Thursday, February 14, 2008

बीजगणित-सी शाम

अंकगणित-सी सुबह है मेरी

बीजगणित-सी शाम

रेखाओं में खिंची हुई है

मेरी उम्र तमाम।


भोर-किरण ने दिया गुणनफल

दुख का, सुख का भाग

जोड़ दिए आहों में आँसू

घटा प्रीत का फाग

प्रश्नचिह्न ही मिले सदा से

मिला न पूर्ण विराम।


जन्म-मरण के 'ब्रैकिट' में

यह हुई ज़िंदगी क़ैद

ब्रैकिट के ही साथ खुल गए

इस जीवन के भेद

नफ़ी-नफ़ी सब जमा हो रहे

आँसू आठों याम।


आँसू, आह, अभावों की ही

ये रेखाएँ तीन

खींच रही हैं त्रिभुज ज़िंदगी का

होकर ग़मगीन

अब तक तो ऐसे बीती है

आगे जाने राम।

कुँअर बेचैन

Thursday, February 7, 2008

रात कहाँ बीते

पेटों में अन्न नहीं भूख

साहस के होठ गए सूख

खेतों के कोश हुए रीते

जीवन की रात कहाँ बीते?


माटी के पाँव फटे

तरुवर के वस्त्र

छीन लिए सूखे ने

फ़सलों के शस्त्र

हाय भूख-डायन को

आज़ कौन जीते?


हड्डी की ठठरी में

उलझी है साँस

मुट्ठी भर भूख और

अंजलि भर प्यास

बीता हर दिन युग-सा

जीवन-विष पीते।


हृदयों के कार्यालय

आज हुए बंद

और न अब ड्यूटी का

तन ही पाबंद

साँसों की फा़इल पर

बँधे लाल फी़ते।

कुँअर बेचैन


पेटों में अन्न नहीं भूख

साहस के होठ गए सूख

खेतों के कोश हुए रीते

जीवन की रात कहाँ बीते?


माटी के पाँव फटे

तरुवर के वस्त्र

छीन लिए सूखे ने

फ़सलों के शस्त्र

हाय भूख-डायन को

आज़ कौन जीते?


हड्डी की ठठरी में

उलझी है साँस

मुट्ठी भर भूख और

अंजलि भर प्यास

बीता हर दिन युग-सा

जीवन-विष पीते।


हृदयों के कार्यालय

आज हुए बंद

और न अब ड्यूटी का

तन ही पाबंद

साँसों की फा़इल पर

बँधे लाल फी़ते।

कुँअर बेचैन