Thursday, April 16, 2009

हम सुपारी-से

21
दिन सरौता
हम सुपारी-से।

ज़िंदगी-है तश्तरी का पान
काल-घर जाता हुआ मेहमान
चार कंधों की
सवारी-से।

जन्म-अंकुर में बदलता बीज़
मृत्यु है कोई ख़रीदी चीज़
साँस वाली
रेजगारी-से।

बचपना-ज्यों सूर, कवि रसखान
है बुढ़ापा-रहिमना का ग्यान
दिन जवानी के
बिहारी-से।
डॉ० कुँअर बेचैन

Monday, April 6, 2009

शोकपत्र के ऊपर

20
ऊपर-ऊपर मुस्कानें हैं
भीतर-भीतर ग़म
जैसे शोकपत्र के ऊपर शादी का अलबम।
समय-मछेरे के हाथों का
थैला है जीवन
जिसमें जिंदा मछली जैसा
उछल रहा है मन
भीतर-भीतर कई मरण हैं
ऊपर कई जनम
जैसे शोकपत्र के ऊपर शादी का अलबम।
अपना-अपना दृष्टिकोण है
अपना-अपना मत
लेकिन मेरे मत में हम सब
बिना पते के ख़त
लिखा हुआ है जहाँ
सुघर शब्दों में दुख का क्रम
जैसे शोकपत्र के ऊपर शादी का अलबम।
डॉ० कुअँर बेचैन