Friday, April 11, 2008

दिन से लंबा ख़ालीपन


नींदें तो

रातों से लंबी

दिन से लंबा ख़ालीपन

अब क्या होगा मेरे मन?


मन की मीन

नयन की नौका

जब भी चाहे

बीती-अनबीती बातों में

डूबे-उतराए


निष्ठुर तट ने

तोड़ दिए हैं

बर्तुल लहरों के कंगन।

अब क्या होगा मेरे मन?


जितनी साँसें

रहन रखी थीं

भोले जीवन ने

एक-एक कर

छीनीं सारी

अश्रु-महाजन ने


लुटा हाट में

इस दुनिया की,

प्राणों का मधुमय कंचन।

अब क्या होगा मेरे मन।।

कुँअर बेचैन