Monday, October 25, 2010

अब आग के लिबास को ज्यादा न दाबिए...

अब आग के लिबास को ज्यादा न दाबिए।
सुलगी हुई कपास को ज्यादा न दाबिए।


ऐसा न हो कि उँगलियाँ घायल पड़ी मिलें
चटके हुए गिलास को ज्यादा न दाबिए।

चुभकर कहीं बना ही न दे घाव पाँव में
पैरों तले की घास को ज्यादा न दाबिए।

मुमकिन है खून आपके दामन पे जा लगे
ज़ख़्मों के आस पास यों ज्यादा न दाबिए।

पीने लगे न खून भी आँसू के साथ-साथ
यों आदमी की प्यास को ज्यादा न दाबिए।

Tuesday, August 3, 2010

बंद होंठों में छुपा लो...

बंद होंठों में छुपा लो
ये हँसी के फूल
वर्ना रो पड़ोगे।

हैं हवा के पास
अनगिन आरियाँ
कटखने तूफान की
तैयारियाँ
कर न देना आँधियों को
रोकने की भूल
वर्ना रो पड़ोगे।

हर नदी पर
अब प्रलय के खेल हैं
हर लहर के ढंग भी
बेमेल हैं
फेंक मत देना नदी पर
निज व्यथा की धूल
वर्ना रो पड़ोगे।

बंद होंठों में छुपा लो
ये हँसी के फूल
वर्ना रो पड़ोगे।

Kunwar

Saturday, April 17, 2010

वो लहरें कहाँ वो रवानी कहाँ है...

वो लहरें कहाँ वो रवानी कहाँ है
बता ज़िन्दगी ज़िन्दगानी कहाँ है

ज़रा ढूँढिए इस धुँए के सफ़र में
हमारी-तुम्हारी कहानी कहाँ है

बड़ी देर से सोचते हैं कि आए
मगर अब हमें नींद आनी कहाँ है

बताएँ ज़रा उँगलियाँ पूछती हैं
हमारी पुरानी निशानी कहाँ है

फ़कीरी में है बादशाहत हमारी
न यह पूछिए राजधानी कहाँ
कुँअर


Monday, April 12, 2010

बड़ा उदास सफ़र है हमारे साथ रहो ..

बड़ा उदास सफ़र है हमारे साथ रहो
बस एक तुम पै नज़र है हमारे साथ रहो।

हम आज एक भटकते हुए मुसाफ़िर हैं
न कोई राह न घर है हमारे साथ रहो।

तुम्हें ही छाँव समझकर यहाँ चले आए
तुम्हारी गोद में सर है हमारे साथ रहो।

कहीं भी हमको डुबा देगी ये पता है हमें
हरेक साँस भँवर है हमारे साथ रहो।

हर इक चिराग़ धुँए में घिरा-घिरा है 'कुँअर'
बड़ा अजीब नगर है हमारे साथ रहो।

'कुँअर'

Sunday, February 28, 2010

शुभकामनाएं

जब से होली के मिले प्यार भरे ये रंग
मन की चुनरी उड़ चली जैसे उड़े पतंग।


लेकर आये साथ में रंगों का त्यौहार
होली की शुभकामना करें आप स्वीकार।


कुँअर बेचैन



आप सभी को परिवार सहित होली की ढेर सारी शुभकामनाएं
डॉ० कुँअर बेचैन