Monday, August 6, 2007

कुछ काले कोट



कुछ काले कोट कचहरी के।

ये उतरें रोज अखाड़े
में
सिर से भी ऊँचे भाड़े
में
पूरे हैं नंगे झाड़े
में

ये कंठ लंगोट कचहरी
के।

बैठे रहते मौनी
साधे
गद्दी पै कानूनी
पाधे
पूरे में से उनके
आधे-

हैं आधे नोट कचहरी
के।

छलनी कर देते आँतों
को
अच्छे-अच्छों के दाँतों
को
तोड़े सब रिश्ते-नातों
को

ये हैं अखरोट कचहरी
के।

डॉ० कुँअर बेचैन