Friday, March 14, 2008

चीज़े बोलती हैं

अगर तुम एक पल भी

ध्यान देकर सुन सको तो,

तुम्हें मालूम यह होगा

कि चीजें बोलती हैं।


तुम्हारे कक्ष की तस्वीर

तुमसे कह रही है

बहुत दिन हो गए तुमने मुझे देखा नहीं है

तुम्हारे द्वार पर यूँ ही पड़े

मासूम ख़त पर

तुम्हारे चुंबनों की एक भी रेखा नहीं है


अगर तुम बंद पलकों में

सपन कुछ बुन सको तो

तुम्हें मालूम यह होगा

कि वे दृग खोलती हैं।


वो रामायण

कि जिसकी ज़िल्द पर जाले पुरे हैं

तुम्हें ममता-भरे स्वर में अभी भी टेरती है।

वो खूँटी पर टँगे

जर्जर पुराने कोट की छवि

तुम्हें अब भी बड़ी मीठी नज़र से हेरती है।


अगर तुम भाव की कलियाँ

हृदय से चुन सको तो

तुम्हें मालूम यह होगा

कि वे मधु घोलती हैं।

कुँअर बेचैन

6 comments:

Anonymous said...

behad atmik anubhav

कंचन सिंह चौहान said...

waah kya baat hai

Yunus Khan said...

अदभुत है । आपके ब्‍लॉग का नियमित पाठक हूं मैं । विविध भारती में उदघोषक हूं । कुंअर जी सोमवार को विविध भारती मुंबई में आपसे भेंट होगी । बहुत स्‍वागत है ।
यूनुस खान

Mohinder56 said...

बहुत सुन्दर व सशक्त अभिव्यक्ति ..

परमजीत सिहँ बाली said...

दिल को छूती हुई एक रचना है।बहुत बढिया!

अमिताभ मीत said...

ओह ! ग़ज़ब.