नींदें तो
रातों से लंबी
दिन से लंबा ख़ालीपन
अब क्या होगा मेरे मन?
मन की मीन
नयन की नौका
जब भी चाहे
बीती-अनबीती बातों में
डूबे-उतराए
निष्ठुर तट ने
तोड़ दिए हैं
बर्तुल लहरों के कंगन।
अब क्या होगा मेरे मन?
जितनी साँसें
रहन रखी थीं
भोले जीवन ने
एक-एक कर
छीनीं सारी
अश्रु-महाजन ने
लुटा हाट में
इस दुनिया की,
प्राणों का मधुमय कंचन।
अब क्या होगा मेरे मन।।
कुँअर बेचैन
5 comments:
कुंवर जी
शब्द और भाव का अद्भुत संगम है आप की रचना में. साधुवाद.
नीरज
गीत तो अच्छा है ही. आपको ब्लॉग पर देखना और अच्छा लगा.
बहुत आभार -बचपन मे सुनते थे आपको-अब ब्लाग पर पढ़कर बहुत खुशी होती है ।
आपको पढ़ना अच्छा लग रहा है , आपका आभार !
आपकी कविता के संबंध में टिप्पणी करना कविता का कद घटाने जैसा है. इतना अवश्य कहूंगा ब्लाग पर आकर आपने ब्लॉगर का सम्मान बढ़ाया है. कविता और ब्लॉगर आगमन दोनों के लिए बधाई.
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