मन !
अपनी कुहनी नहीं टिका
उन संबंधों के शूलों पर
जिनकी गलबहियों से तेरे
मानवपन का दम घुटता हो।
जो आए और छील जाए
कोमल मूरत मृदु भावों की
तेरी गठरी को दे बैठे
बस एक दिशा बिखरावों की
मन !
बाँध न अपनी हर नौका
ऐसी तरंग के कूलों पर
बस सिर्फ़ ढहाने की ख़ातिर
जिसका पग तट तक उठता हो।
जो तेरी सही नज़र पर भी
टूटा चश्मा पहना जाए
तेरे गीतों की धारा को
मरुथल का रेत बना जाए
मन !
रीझ न यों निर्गंध-बुझे
उस सन्नाटे के फूलों पर
जिनकी छुअनों से दृष्टि जले,
भावुक मीठापन लुटता हो।
अपनी कुहनी नहीं टिका
उन संबंधों के शूलों पर
जिनकी गलबहियों से तेरे
मानवपन का दम घुटता हो।
जो आए और छील जाए
कोमल मूरत मृदु भावों की
तेरी गठरी को दे बैठे
बस एक दिशा बिखरावों की
मन !
बाँध न अपनी हर नौका
ऐसी तरंग के कूलों पर
बस सिर्फ़ ढहाने की ख़ातिर
जिसका पग तट तक उठता हो।
जो तेरी सही नज़र पर भी
टूटा चश्मा पहना जाए
तेरे गीतों की धारा को
मरुथल का रेत बना जाए
मन !
रीझ न यों निर्गंध-बुझे
उस सन्नाटे के फूलों पर
जिनकी छुअनों से दृष्टि जले,
भावुक मीठापन लुटता हो।
कुँअर बेचैन
8 comments:
मन रीझ रहा मेरा , मन रीझ न यो... पर
मन खोजता है अक्सर
लेकिन अब संयोगवश ही मिलताी है
सच्ची कविता
अच्छी कविता
सच में कविता
वाह वाह
बेचैन जी वाह वाह
आपका तो जवाब नहीं
एक अच्छी कविता पढ़ने का सौभाग्य मिला, धन्यवाद आपका
कुँवर साहब आपको पहले भी कई बार पढ़ा है और हर बार नयापन सा लगता है।
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गुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम
कुंवर साहेब
आप की कविता के बारे में क्या कहा जाए...विलक्षण होती है हर बार...आप जिस तरह से भावपूर्ण ग़ज़लें और गीत रचते हैं वो सच में अद्वितीय है...
नीरज .
मन रीझ ना यूँ ....वाह बहुत सुंदर रचना लिखी है आपने
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
Kuwar jee, " दिल के दरमियाँ " kaa link maine apne blog www.koshimani.blogspot.com par dal diya hai. agar aapko asuvidha ho to hata dunga. maine purva anumati nahin lee,iske liye chama chahta hun. halankee yah mera pahla pasandida blog hai.
सभी पाठकों का बहुत-बहुत धन्यवाद...
ये इतनी-इतनी सुन्दर कविता !
बस धन्यवाद ही कह पाना संभव है.
आपने लिखा "मन बाँध ना अपनी 'हर' नौका". यहाँ "हर नौका" क्यों ?
सादर
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