Monday, April 6, 2009

शोकपत्र के ऊपर

20
ऊपर-ऊपर मुस्कानें हैं
भीतर-भीतर ग़म
जैसे शोकपत्र के ऊपर शादी का अलबम।
समय-मछेरे के हाथों का
थैला है जीवन
जिसमें जिंदा मछली जैसा
उछल रहा है मन
भीतर-भीतर कई मरण हैं
ऊपर कई जनम
जैसे शोकपत्र के ऊपर शादी का अलबम।
अपना-अपना दृष्टिकोण है
अपना-अपना मत
लेकिन मेरे मत में हम सब
बिना पते के ख़त
लिखा हुआ है जहाँ
सुघर शब्दों में दुख का क्रम
जैसे शोकपत्र के ऊपर शादी का अलबम।
डॉ० कुअँर बेचैन

4 comments:

संध्या आर्य said...

थैला है जीवन
जिसमें जिंदा मछली जैसा
उछल रहा है मन
भीतर-भीतर कई मरण हैं
ऊपर कई जनम

सच मे जीवन यही है आपने इतनी बडी सच्चाई इतनी खुबसुरती से बयान कर डाली कि आँखो को छलकने से नही रोक पायी..........ये जन्मो का फासला इतना लम्बा क्यो होता है......

रंजना said...

आपको नमन.....आप जैसे लोगों के कलम से निकलकर शब्द अपना sachcha arth pate हैं..उनकी garima badha jatee है....

बहुत बहुत सुन्दर rachna...waah !!!

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया ...

Shardula said...

बाप रे! कितना खरा खरा लिखते हैं आप !
लगता है कोई सत्य की कड़वी दवा पिला रहे हैं, सुघड़ शब्दों का कलेवर चढा के.
अद्भुत !!
श्रृंगार, प्रेम और शहदीले भावों से परे आपकी इन रचनाओं में अलग ही आयाम हैं.
नमन स्वीकारें !