Sunday, May 3, 2009

सर्दियां १


22
छत हुई बातून वातायन मुखर हैं
सर्दियाँ हैं।

एक तुतला शोर
सड़कें कूटता है
हर गली का मौन
क्रमशः टूटता है
बालकों के खेल घर से बेख़बर हैं
सर्दियाँ हैं।

दोपहर भी
श्वेत स्वेटर बुन रही है
बहू बुड्ढी सास का दुःख
सुन रही है
बात उनकी और है जो हमउमर हैं
सर्दियाँ हैं।

चाँदनी रातें
बरफ़ की सिल्लियाँ हैं
ये सुबह, ये शाम
भीगी बिल्लियाँ हैं
साहब दफ़्तर में नहीं हैं आज घर हैं
सर्दियाँ हैं।

डॉ० कुँअर बेचैन

20 comments:

डॉ. मनोज मिश्र said...

डॉ० कुअँर बेचैन की रचना और सर्वश्रेष्ठ न हो ,ऐसा कभी नहीं हुआ .

"अर्श" said...

KUNWAR SAHIB KO SALAAM ITNI KHUBSURAT RACHANAA KE LIYE AAPKA SHUKRIYA BEHATARIN PRASTUTI KE LIYE..


ARSH

admin said...

एक सीधी, सादी और गम्‍भीर कविता।

-----------
SBAI TSALIIM

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

कुअँर जी को मैनें कई बार सुना है...यहाँ उन्हें प्रस्तुत करने के लिए आप को बहुत बहुत धन्यवाद....
मेरा नया ब्लाग जो बनारस के रचनाकारों पर आधारित है,जरूर देंखे...
www.kaviaurkavita.blogspot.com

रावेंद्रकुमार रवि said...

बहुत सुंदर और नवीन
बिंबों से सजा हुआ नवगीत!

रंजीत/ Ranjit said...

सर्दियों की ऐसी तस्वीर आप जैसे उम्दा कवि ही खींच सकते हैं। बधाई।
रंजीत

ओम आर्य said...

सिर्फ सर्वश्रेष्ठ ही कविता होती है आपकी.

निर्मला कपिला said...

ीअब कुंवर जी के लिये कुछ कहना सूरज को दीपक दिखाने जैसा है उन्हें पढ कर तो मैं अपने अंदर अनन्त गहराई मे खो जाती हूँ मुझे आपके ब्लोग्स का पता ही नहिं था अभी नई हँ बहुत कुछ नहीं पता बहुत खुशी हुई आपका बहुत बहुत धन्यवाद्

रंजना said...

आप जैसे विद्व जनों के रचनाओं पर प्रतिक्रिया देने का सामर्थ्य हममे नहीं....हमें तो बस पढ़ कर मुग्ध होकर और आपके शब्दों के प्रति नतमस्तक हो चले जाना है...

Randhir Singh Suman said...

good

Razi Shahab said...

achcha

बाल भवन जबलपुर said...

कुंवर जी पहचाना मुझे
याद कीजिए शायद याद आ जाए

Shardula said...

परम आदरणीय डॉ० कुअँर बेचैन जी,
आज पहली बार अपने इस नियम पे अफ़सोस हुआ कि मैं ब्लोग्स नहीं देखती ( २ को छोड़ के :). आज आपका लिखा एक गीत ढूँढ रही थी कि ये ब्लॉग मिल गया. पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ कि ये आपका ब्लॉग है, फिर याद आया कि शायद गुरूजी (राकेश खंडेलवाल जी) ने बताया था कि भावना जी आपकी पुत्रवधु हैं ( पक्का याद नहीं है :)
जब छोटी थी, स्कूल में, तब आपके गीत सुनते ही याद हो जाया करते थे. दूरदर्शन पे कवि-सम्मलेन सुना करते थे हम सब. बहनों के बीच बाँट लिया करते थे कि पहला पैराग्राफ कौन उतारेगा, दूसरा कौन. आप, रमानाथ अवस्थी जी आदि, सब हमारे पसंदीदा कवियों में थे. आपकी "दिल पे मुश्किल है . .", "बाबुल के अंगना जइयो" चुन्नियाँ सुखाते-सुखाते आँगन में गला फाड़-फाड़ के गाया करते थे हम सब :)
पिछले साल ई-कविता मैं आने के बाद, अनूप दा और गुरुजी से आपकी recordings प्राप्त हुईं. सुनती हूँ तो आनन्दित हो जाती हूँ. तभी आपकी "जिन्दगी यूं भी . . " सुनी. आपकी कवितायें, गीत, गज़लें पानी की तरह बहते हुए सीधे हृदय में बस जातीं हैं. मेरा परम सौभाग्य, माँ शारदा और गुरुजी का आशीष है जो आपका नवीन लेखन पढ़ने को मिलेगा. आदरणीया भावना जी का बहुत आभार इस साईट के लिए.
जब भी समय मिलेगा, यहाँ आया करूँगी और आपको पढ़ा करूंगी. प्रश्न भी किया करूँगी अगर मन में प्रश्न उठे तो :)
अरे! ये कमेन्ट तो बहुत लंबा हो गया और पोस्ट की तो बात तक ना की मैंने :)
सूरज को क्या दिया दिखाऊं यह कह कर कि अद्भुत बिम्ब हैं !!
आपने लिखा है " एक तुतला शोर सड़कें कूटता है " -- यहाँ आपका तात्पर्य किस से है?
सादर
शार्दुला (shar_j_n@yahoo.com)

Randhir Singh Suman said...

nice

Randhir Singh Suman said...

साहब दफ़्तर में नहीं हैं आज घर हैं
सर्दियाँ हैं। nice

निर्मला कपिला said...

कुअँर साहिब आपकी अगली रचना का इन्तज़ार है आभार्

कडुवासच said...

... bahut sundar !!!!

Pushpendra Singh "Pushp" said...

बहुत खूब अच्छी अच्छी रचना
बहुत बहुत आभार

बलराम अग्रवाल said...

आपको सुनते-पढ़ते मुझे ज्यादा नहीं, मात्र 40 वर्ष हुए हैं। आपके गीतों में आज भी वैसी ही ताज़गी है, बिम्बात्मकता और प्रतीकात्मकता है। नववर्ष, लोहड़ी और संक्रांति के पर्वों पर शुभकानाएँ।

Parul kanani said...

dr sahab ki kalam mein jadoo hai..unko padhna accha lagna hi hai.