Monday, April 12, 2010

बड़ा उदास सफ़र है हमारे साथ रहो ..

बड़ा उदास सफ़र है हमारे साथ रहो
बस एक तुम पै नज़र है हमारे साथ रहो।

हम आज एक भटकते हुए मुसाफ़िर हैं
न कोई राह न घर है हमारे साथ रहो।

तुम्हें ही छाँव समझकर यहाँ चले आए
तुम्हारी गोद में सर है हमारे साथ रहो।

कहीं भी हमको डुबा देगी ये पता है हमें
हरेक साँस भँवर है हमारे साथ रहो।

हर इक चिराग़ धुँए में घिरा-घिरा है 'कुँअर'
बड़ा अजीब नगर है हमारे साथ रहो।

'कुँअर'

9 comments:

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत खूब

"अर्श" said...

कुंवर साब मेरे चहेते शईरों में हैं ... इनके बारे में कुछ भी कहूँ कम ही होगा...

इनका ही एक शे'र है ..
तय तो ये था ज़ुल्म के नाख़ून काटे जायेंगे
लोग नन्हीं तितलियों के पर क़तर कर आ गए


अर्श

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर गजल है।बधाई।

हर इक चिराग़ धुँए में घिरा-घिरा है 'कुँअर'
बड़ा अजीब नगर है हमारे साथ रहो।

Udan Tashtari said...

आनन्द आ गया डॉक्टर साहब की गज़ल पढ़कर.

Asha Joglekar said...

कहीं भी हमको डुबा देगी ये पता है हमें
हरेक साँस भँवर है हमारे साथ रहो।
बहुत खूब ।

Shardula said...

जब कोई ग़ज़ल, गीत की तरह भावों की सीढियां चढती जाती है तो बरबस उसकी ओर खिंच जाता है मन! मुझे लगा कि इस ग़ज़ल में एक उदासी है जो बढ़ती जा रही है... एक समर्पण है, साथ वह भी बढता जाता है.
बहुत ही सुन्दर!
कृपया, इसे गा कर पोडकास्ट लगाईये ना !
"बड़ा उदास सफ़र.."-- इसमें कितनी कशिश!
"हम आज एक.."-- जानते हैं क्या याद आया इससे?"चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफिर का नसीब!"
"तुम्हें ही छाँव..."-- "खुद को मैं बाँट ना डालूं कहीं दामन दामन"...कतील साहब की याद आ गई!
आपका आभार एक सुन्दर ग़ज़ल के लिए और भावना जी का भी!
सादर शार्दुला

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब !!!

संजय भास्‍कर said...

किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

महावीर said...

बहुत ही प्यारी ग़ज़ल है. हर लफ्ज़, हर शे'र दिल को छूता हुआ.
महावीर शर्मा