वो लहरें कहाँ वो रवानी कहाँ है
बता ज़िन्दगी ज़िन्दगानी कहाँ है
ज़रा ढूँढिए इस धुँए के सफ़र में
हमारी-तुम्हारी कहानी कहाँ है
बड़ी देर से सोचते हैं कि आए
मगर अब हमें नींद आनी कहाँ है
बताएँ ज़रा उँगलियाँ पूछती हैं
हमारी पुरानी निशानी कहाँ है
फ़कीरी में है बादशाहत हमारी
न यह पूछिए राजधानी कहाँ
कुँअर
Saturday, April 17, 2010
वो लहरें कहाँ वो रवानी कहाँ है...
Posted by Dr.Bhawna Kunwar at 5:37 PM
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16 comments:
bahut khoob...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
आनन्द आ गया डॉक्टर साहब की गज़ल पढ़कर.
बहुत आभार!
फ़कीरी में है बादशाहत हमारी
न यह पूछिए राजधानी कहाँ
फकीरों की तो राजधानी हर जगह है
बहुत सुन्दर गज़ल. हर शेर क्या कहने
आपकी हर ग़ज़ल प्रभावित करती है और दिल को छूती है। आप भी ब्लॉग के माध्यम से अपनी रचनाओं को पाठकों के रू ब रू कर रहे हैं, बहुत अच्छा लगा। मैं आपकी दस चुनिन्दा ग़ज़लें अपने ब्लॉग "वाटिका" पर देना चाहता हूँ। क्या उपलब्ध हो पाएंगी। परिचय और फोटो भी। "वाटिका" का लिंक है- www.vaatika.blogspot.com
बताएँ ज़रा उँगलियाँ पूछती हैं
हमारी पुरानी निशानी कहाँ है
kya baat hein ... Bahur Khub !!
nice
bahut sundar rachana ...abhaar.
फकीरी में है बादशाहत हमारी
न पूछिए की राजधानी कहाँ है ...
वाह ...
मन लगा मेरा यार फकीरी में ...
बता जिंदगी जिंदगानी कहाँ है ...ढूंढते रह जाते तमाम उम्र ...
फ़कीरी में है बादशाहत हमारी
न यह पूछिए राजधानी कहाँ
वाह!!! बार-बार पढने को दिल चाहे ऐसी रचना. आभार आपका.
bahut hi behatareen post .laga ki haqikat ko samane hi dekh rahi hun.
poonam
फ़िर से एक उम्दा ग़ज़ल!
ये बहुत सुन्दर, haunting सा शेर :
"ज़रा ढूँढिए इस धुँए के सफ़र में
हमारी-तुम्हारी कहानी कहाँ है" --- जो कहीं नहीं है, वो हर कहीं है !
और "फ़कीरी में बादशाहत " ये चिरपरिचित, पर बहुत सुन्दर आभास जब सच्चाई के निकट से आता हुआ लगे !
"जिंदगानी कहाँ है" पे तो आप खुद कह ही चुके हैं ... " जिन्दगी भोर है सूरज से निकलते रहिये"
सोच रहे हैं कि उंगलियाँ क्या ढूँढ रहीं हैं ... कोई स्मृति-चिन्ह, या वही पुरानी कुशलता और असर?
एक और बात-- क्या आपने "नींद" को प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया है?
सादर प्रणाम और भावना जी को धन्यवाद !
शार्दुला
कुवर साहेब को पढ़ कर बड़ा हुआ हूँ... ब्लॉग पर उनके ग़ज़ल को पढ़ कर अच्छा लगा... भावना जी को धन्यबाद...
डॉ. साहब, बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने. ख़याल और बयान की ख़ूबी पढ़ते ही बनती है. ग़ज़ल दिल को छू गई.
बताएँ ज़रा उँगलियाँ पूछती हैं
हमारी पुरानी निशानी कहाँ है
महावीर शर्मा
ज़रा ढूँढिए इस धुँए के सफ़र में
हमारी-तुम्हारी कहानी कहाँ है.....dil ko chhoo gai gajal..shubhkamna....
Vah..kya baat hai. Maine to ye pahli baar padhi hai.
फ़कीरी में है बादशाहत हमारी
न यह पूछिए राजधानी कहाँ
bahut khoob kaha hai...
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