Saturday, April 17, 2010

वो लहरें कहाँ वो रवानी कहाँ है...

वो लहरें कहाँ वो रवानी कहाँ है
बता ज़िन्दगी ज़िन्दगानी कहाँ है

ज़रा ढूँढिए इस धुँए के सफ़र में
हमारी-तुम्हारी कहानी कहाँ है

बड़ी देर से सोचते हैं कि आए
मगर अब हमें नींद आनी कहाँ है

बताएँ ज़रा उँगलियाँ पूछती हैं
हमारी पुरानी निशानी कहाँ है

फ़कीरी में है बादशाहत हमारी
न यह पूछिए राजधानी कहाँ
कुँअर


16 comments:

दिलीप said...

bahut khoob...

http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

Udan Tashtari said...

आनन्द आ गया डॉक्टर साहब की गज़ल पढ़कर.

बहुत आभार!

M VERMA said...

फ़कीरी में है बादशाहत हमारी
न यह पूछिए राजधानी कहाँ
फकीरों की तो राजधानी हर जगह है
बहुत सुन्दर गज़ल. हर शेर क्या कहने

सुभाष नीरव said...

आपकी हर ग़ज़ल प्रभावित करती है और दिल को छूती है। आप भी ब्लॉग के माध्यम से अपनी रचनाओं को पाठकों के रू ब रू कर रहे हैं, बहुत अच्छा लगा। मैं आपकी दस चुनिन्दा ग़ज़लें अपने ब्लॉग "वाटिका" पर देना चाहता हूँ। क्या उपलब्ध हो पाएंगी। परिचय और फोटो भी। "वाटिका" का लिंक है- www.vaatika.blogspot.com

Unknown said...

बताएँ ज़रा उँगलियाँ पूछती हैं
हमारी पुरानी निशानी कहाँ है

kya baat hein ... Bahur Khub !!

Randhir Singh Suman said...

nice

समयचक्र said...

bahut sundar rachana ...abhaar.

वाणी गीत said...

फकीरी में है बादशाहत हमारी
न पूछिए की राजधानी कहाँ है ...
वाह ...
मन लगा मेरा यार फकीरी में ...

बता जिंदगी जिंदगानी कहाँ है ...ढूंढते रह जाते तमाम उम्र ...

वन्दना अवस्थी दुबे said...

फ़कीरी में है बादशाहत हमारी
न यह पूछिए राजधानी कहाँ
वाह!!! बार-बार पढने को दिल चाहे ऐसी रचना. आभार आपका.

पूनम श्रीवास्तव said...

bahut hi behatareen post .laga ki haqikat ko samane hi dekh rahi hun.
poonam

Shardula said...

फ़िर से एक उम्दा ग़ज़ल!
ये बहुत सुन्दर, haunting सा शेर :
"ज़रा ढूँढिए इस धुँए के सफ़र में
हमारी-तुम्हारी कहानी कहाँ है" --- जो कहीं नहीं है, वो हर कहीं है !
और "फ़कीरी में बादशाहत " ये चिरपरिचित, पर बहुत सुन्दर आभास जब सच्चाई के निकट से आता हुआ लगे !
"जिंदगानी कहाँ है" पे तो आप खुद कह ही चुके हैं ... " जिन्दगी भोर है सूरज से निकलते रहिये"
सोच रहे हैं कि उंगलियाँ क्या ढूँढ रहीं हैं ... कोई स्मृति-चिन्ह, या वही पुरानी कुशलता और असर?
एक और बात-- क्या आपने "नींद" को प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया है?
सादर प्रणाम और भावना जी को धन्यवाद !
शार्दुला

अरुण चन्द्र रॉय said...

कुवर साहेब को पढ़ कर बड़ा हुआ हूँ... ब्लॉग पर उनके ग़ज़ल को पढ़ कर अच्छा लगा... भावना जी को धन्यबाद...

महावीर said...

डॉ. साहब, बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने. ख़याल और बयान की ख़ूबी पढ़ते ही बनती है. ग़ज़ल दिल को छू गई.
बताएँ ज़रा उँगलियाँ पूछती हैं
हमारी पुरानी निशानी कहाँ है
महावीर शर्मा

मेरे भाव said...

ज़रा ढूँढिए इस धुँए के सफ़र में
हमारी-तुम्हारी कहानी कहाँ है.....dil ko chhoo gai gajal..shubhkamna....

वीरेंद्र सिंह said...

Vah..kya baat hai. Maine to ye pahli baar padhi hai.

Anand Rathore said...

फ़कीरी में है बादशाहत हमारी
न यह पूछिए राजधानी कहाँ

bahut khoob kaha hai...