Tuesday, August 3, 2010

बंद होंठों में छुपा लो...

बंद होंठों में छुपा लो
ये हँसी के फूल
वर्ना रो पड़ोगे।

हैं हवा के पास
अनगिन आरियाँ
कटखने तूफान की
तैयारियाँ
कर न देना आँधियों को
रोकने की भूल
वर्ना रो पड़ोगे।

हर नदी पर
अब प्रलय के खेल हैं
हर लहर के ढंग भी
बेमेल हैं
फेंक मत देना नदी पर
निज व्यथा की धूल
वर्ना रो पड़ोगे।

बंद होंठों में छुपा लो
ये हँसी के फूल
वर्ना रो पड़ोगे।

Kunwar

13 comments:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

Bahut Sundar, Sashakt Panktiyaan.

माधव( Madhav) said...

wah wah

अरुण चन्द्र रॉय said...

बंद होंठों में छुपा लो
ये हँसी के फूल
वर्ना रो पड़ोगे...
बहुत सुंदर पंक्तिया.. जिस तरह आम आमी आशंकाओं के साए में जी रहा है आज और खुश होने के अवसर कम हैं... और लोग खुश होने भी नहीं देना चाहते... कुवर साहेब की कविता बहुत ही समसामयिक बन गयी है . साथ ही.. नए तरह का प्रयोग भी है कविता में... 'हवाओं के पास आरियाँ' ... शायद यह बात पहली बार कही जा रही है..

vandana gupta said...

आज के हालात पर बहुत ही पैना वार्……………सम सामयिक रचना दिल को छूती है और सोचने को मजबूर करती है।

सुज्ञ said...

क्या ही सुंदर अभिव्यक्ति!!!

हर नदी पर
अब प्रलय के खेल हैं
हर लहर के ढंग भी
बेमेल हैं
फेंक मत देना नदी पर
निज व्यथा की धूल
वर्ना रो पड़ोगे।

rajani kant said...

सर , आपकी दी हुई शिक्षा से कुछ लिख तो लेता हूँ पर आपके रचे पर टिप्पणी कर पाने की औकात अब भी नहीं है. श्रद्धावनत --- रजनीकान्त.

mridula pradhan said...

bahot achchi hai.

Anonymous said...

bahut hi pyari panktiyaan...
laajawaab....

Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....

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जयकृष्ण राय तुषार said...

dr.sahab ki kavitaon ka koi jabab nahin main unke saath manch par kavita padh chuka hon aur shrota bhi hon

वीरेंद्र सिंह said...

Bahut hi badiya kavita.........

वीरेंद्र सिंह said...

ye kavita bahut hi sunder hai.

mridula pradhan said...

wah. bahot achchi.

पूनम श्रीवास्तव said...

बंद होंठों में छुपा लो
ये हँसी के फूल
वर्ना रो पड़ोगे।
bahut hi behatreen prastuti.
poonam