ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक
चाँदनी चार क़दम, धूप चली मीलो तक
चाँदनी चार क़दम, धूप चली मीलो तक
प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक्सर
ख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक
प्यार में कैसी थकन कहके ये घर से निकली
कृष्ण की खोज में वृषभानु-लली मीलों तक
घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की हँसी
ख़ुशबुएँ देती रही नन्हीं कली मीलों तक
माँ के आँचल से जो लिपटी तो घुमड़कर बरसी
मेरी पलकों में जो इक पीर पली मीलों तक
मैं हुआ चुप तो कोई और उधर बोल उठा
बात यह है कि तेरी बात चली मीलों तक
हम तुम्हारे हैं 'कुँअर' उसने कहा था इक दिन
मन में घुलती रही मिसरी की डली मीलों तक
डॉ० कुँअर बेचैन
5 comments:
>हम तुम्हारे हैं 'कुँअर' उसने कहा था इक दिन
>मन में घुलती रही मिसरी की डली मीलों तक
पूरी गज़ल एक मिसरी की डली की तरह घुलती हुई दिल में उतर गई ........
नवंबर 03, 2006
अनूप जी बेचैन जी की ये गज़ल उनकी पसंदीदा गज़लों में से है आपको पसंद आई उसके लिये बहुत-बहुत शुक्रिया।
नवंबर 08, 2006
मैं हुआ चुप तो कोई और उधर बोल उठा
बात यह है कि तेरी बात चली मीलों तक
Bahut hi Umadgi se pesh kiya hai har ek Misra. Bhawnaji aapne bahut hi acha awasar diya hai Bechain jo ko padne ka.
Dhanyawaad ke saath
Devi
नवंबर 11, 2006
आपका यह गीत हमेशा ही मीलों तक बहा ले जाता है. जब आप गाते हैं तब भी और पढ़ते वक्त भी आपकी आवाज गुंजती रहती है.
सादर
समीर लाल
देवी जी बहुत-बहुत शुक्रिया मेरे प्रयास को पसन्द करने के लिये। आप सबका संदेश मैं बेचैन जी की देती हूँ और वो आप सबका शुक्रिया अदा करते हैं। आपका सबका बहुत-बहुत शुक्रिया।
नवंबर 11, 2006
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