मौत तो आनी है तो फिर मौत का क्यों डर रखूँ
जिंदगी आ, तेरे क़दमों पर मैं अपना सर रखूँ
जिसमें माँ और बाप की सेवा का शुभ संकल्प हो
चाहता हूँ मैं भी काँधे पर वही काँवर रखूँ
हाँ, मुझे उड़ना है लेकिन इसका मतलब यह नहीं
अपने सच्चे बाज़ुओं में इसके-उसके पर रखूँ
आज कैसे इम्तहाँ में उसने डाला है है मुझे
हुक्म यह देकर कि अपना धड़ रखूँ या सर रखूँ
कौन जाने कब बुलावा आए और जाना पड़े
सोचता हूँ हर घड़ी तैयार अब बिस्तर रखूँ
ऐसा कहना हो गया है मेरी आदत में शुमार
काम वो तो कर लिया है काम ये भी कर रख रखूँ
खेल भी चलता रहे और बात भी होती रहे
तुम सवालों को रखो मैं सामने उत्तर रखूँ
डॉ० कुँअर बेचैन
जिंदगी आ, तेरे क़दमों पर मैं अपना सर रखूँ
जिसमें माँ और बाप की सेवा का शुभ संकल्प हो
चाहता हूँ मैं भी काँधे पर वही काँवर रखूँ
हाँ, मुझे उड़ना है लेकिन इसका मतलब यह नहीं
अपने सच्चे बाज़ुओं में इसके-उसके पर रखूँ
आज कैसे इम्तहाँ में उसने डाला है है मुझे
हुक्म यह देकर कि अपना धड़ रखूँ या सर रखूँ
कौन जाने कब बुलावा आए और जाना पड़े
सोचता हूँ हर घड़ी तैयार अब बिस्तर रखूँ
ऐसा कहना हो गया है मेरी आदत में शुमार
काम वो तो कर लिया है काम ये भी कर रख रखूँ
खेल भी चलता रहे और बात भी होती रहे
तुम सवालों को रखो मैं सामने उत्तर रखूँ
डॉ० कुँअर बेचैन
11 comments:
आपको ब्लाग पर देख कर प्रसन्नता हुई, किंतु फांट के कारण आपकी रचना पढ़ने में असमर्थ रहा।
मौत से जो न डरे वो निडर
कब्रिस्तान में जो करे डिनर वो निडर
जो डर कर भी न डरे वो निडर
मारने मरने से न डरे वो निडर
हँसते हुए जो करे डिनर वो निडर
रोते हुए भी जो न डरे वो निडर
हाँ, मुझे उड़ना है लेकिन इसका मतलब यह नहीं
अपने सच्चे बाज़ुओं में इसके-उसके पर रखूँ
आदरणीय
अपने संकल्प और आत्मविश्वासों को जगाता यह शेर बहुत पसन्द आया.
सादर,
राकेश
क्या बात है डाक्टर साहब। मज़ा आ गया।
एक दम दिल को छू गयी साहब
आदरनिये कुंवर साहेब
आप की ग़ज़लें पढ़ के बहुत कुछ सीखा है हमने जीवन में. आप का बरसों से घोर प्रशंकाक हूँ और जब जहाँ अवसर मिलता है आप को पढ़ना सुनना नहीं छोड़ता. आप को ब्लॉग जगत में देख जो खुशी मिली है बयां नहीं कर सकता.
कौन जाने कब बुलावा आए और जाना पड़े
सोचता हूँ हर घड़ी तैयार अब बिस्तर रखूँ
लाजवाब शेर है डाक्टर साहेब. इसी ज़मीन पर मेरा एक शेर है:
तुमने ये तम्बू गहरे क्यों गाड़ लिए हैं
चलने का गर अचानक फरमान हुआ तो?
अब तो आप से गुफ्तगू होती रहेगी.गुजारिश है की वक्त इजाज़त दे तो मेरे ब्लॉग पर पर एक नज़र डाल धन्य करें हमें.
नीरज
आदरनीय दादा:
बहुत ही सुन्दर गज़ल है
सभी शेर अच्छे हैं लेकिन ये विशेष रूप से अच्छा लगा :
>हाँ, मुझे उड़ना है लेकिन इसका मतलब यह नहीं
>अपने सच्चे बाज़ुओं में इसके-उसके पर रखूँ
यूं ही बैठे बैठे आप की ज़मीन पर एक शेर लिखनें की गुस्ताखी की है :
है थकन गहरी मगर खुद आप ही मिट जायेगी
जो मैं मंज़िल पे पहुँच काँधे पे तेरे सर रखूँ
आशा है आप बचपना समझ कर माफ़/सुधार कर देंगे ।
सादर
अनूप
AADARNIYA KUNWAR JI,NAMASKAAR
खेल भी चलता रहे और बात भी होती रहे
तुम सवालों को रखो मैं सामने उत्तर रखूँ
KITNI KHUUBSURAT BAAT HAI YE...BAHUT AABHAAR
आप सबका रचना पंसद करने के लिये धन्यवाद...
कुँअर
मौत का डर है किसे, मौत ख़ुद ही नहीं आती
ज़िंदगी जोरू बनी, न जोरू न ज़िंदगी जाती
मतलबी औलाद सारी बाप केवल बैंक सा
कारूं का खज़ाना समझ बैठे बाप की थाती
- राज वत्स्य
जिसमें माँ और बाप की सेवा का शुभ संकल्प हो
चाहता हूँ मैं भी काँधे पर वही काँवर रखूँ
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया और (आज) फिर कोई दूसरा ब्लॉग न खोल सका।
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