Thursday, February 14, 2008

बीजगणित-सी शाम

अंकगणित-सी सुबह है मेरी

बीजगणित-सी शाम

रेखाओं में खिंची हुई है

मेरी उम्र तमाम।


भोर-किरण ने दिया गुणनफल

दुख का, सुख का भाग

जोड़ दिए आहों में आँसू

घटा प्रीत का फाग

प्रश्नचिह्न ही मिले सदा से

मिला न पूर्ण विराम।


जन्म-मरण के 'ब्रैकिट' में

यह हुई ज़िंदगी क़ैद

ब्रैकिट के ही साथ खुल गए

इस जीवन के भेद

नफ़ी-नफ़ी सब जमा हो रहे

आँसू आठों याम।


आँसू, आह, अभावों की ही

ये रेखाएँ तीन

खींच रही हैं त्रिभुज ज़िंदगी का

होकर ग़मगीन

अब तक तो ऐसे बीती है

आगे जाने राम।

कुँअर बेचैन

7 comments:

Yunus Khan said...

बेहतरीन रचना । आनंद आ गया ।

Arun Arora said...

सु स्वागतम ,बहुत अच्छा लगा आपकॊ यहा देख कर,कम से कम अब अकसर आपको यहा तो पढते रहेगे ना..:)
राम ने भी काटी थी पल गिन
उसे भी मिला कहा आराम
नौ दो ग्यारह हूई छाव अब
मत ढूढ यहा विश्राम

पारुल "पुखराज" said...

अंकगणित-सी सुबह है मेरी

बीजगणित-सी शाम
sundar bhaav...pranaam

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा. साथ ही आपको उ.प्र. सरकार द्वारा साहित्य सम्मान के लिये हार्दिक बधाई.

अनूप शुक्ल said...

बहुत अच्छी कविता। आपको उ.प्र. सरकार द्वारा सम्मानित किये जाने पर बधाई।

रजनी भार्गव said...

दादा प्रणाम,
बहुत अच्छी है, पढ़ कर मज़ा आ गया. सम्मान के लिये बहुत-बहुत बधाई.

अनूप भार्गव said...

दादा:
मेरा भी प्रणाम और पुरुस्कार के लिये बधाई स्वीकारें ।
रचना बहुत सुन्दर लगी ।