19
बर्तन की यह उठका-पटकी
यह बात-बात पर झल्लाना
चिट्ठी है किसी दुखी मन की।
बर्तन की यह उठका-पटकी
यह बात-बात पर झल्लाना
चिट्ठी है किसी दुखी मन की।
यह थकी देह पर कर्मभार
इसको खाँसी, उसको बुखार
जितना वेतन, उतना उधार
नन्हें-मुन्नों को गुस्से में
हर बार, मारकार पछताना
चिट्ठी है किसी दुखी मन की।
इतने धंधे, यह क्षीणकाय-
ढोती ही रहती विवश हाय !
ख़ुद ही उलझन, खुद ही उपाय
आने पर किसी अतिथि जन के
दुख में भी सहसा हँस जाना
चिट्ठी है किसी दुखी मन की।
डॉ० कुअँर बेचैन
7 comments:
आने पर किसी अतिथि जन के
दुख में भी सहसा हँस जाना
चिट्ठी है किसी दुखी मन की।
behatareen...!
achchhee kavita hai
बहुत खूबसूरत ....
दुख में भी सहसा हँस जाना
चिट्ठी है किसी दुखी मन की।
बहुत खूब...
Khoobsoorat hai Dr. saheb.
dr.shab beautifuuly exprssed.
WITH WISHES
AJIT PAL SINGH DAIA
इस कविता को बस सादर प्रणाम ! उस दृष्टि को भी जो सब देख के शब्दों में ढाल सकी ये सब !
सादर,
शार्दुला
Post a Comment