Sunday, July 15, 2007

गज़ल...


कोई रस्ता है न मंज़िल न तो घर है कोई
आप कहिएगा सफ़र ये भी सफ़र है कोई
'पास-बुक' पर तो नज़र है कि कहाँ रक्खी है
प्यार के ख़त का पता है न ख़बर है कोई
ठोकरें दे के तुझे उसने तो समझाया बहुत
एक ठोकर का भी क्या तुझपे असर है कोई
रात-दिन अपने इशारों पे नचाता है मुझे
मैंने देखा तो नहीं, मुझमें मगर है कोई
एक भी दिल में न उतरी, न कोई दोस्त बना
यार तू यह तो बता यह भी नज़र है कोई
प्यार से हाथ मिलाने से ही पुल बनते हैं
काट दो, काट दो गर दिल में भँवर है कोई
मौत दीवार है, दीवार के उस पार से अब
मुझको रह-रह के बुलाता है उधर है कोई
सारी दुनिया में लुटाता ही रहा प्यार अपना
कौन है, सुनते हैं, बेचैन 'कुँअर' है कोई

डॉ० कुँअर बेचैन

5 comments:

Anonymous said...

aderniy kunwar sahab
namaskar
mai to jitni bhi tarif karun kam hai. bahut sundar
bahut hi sundar
kusum sinha

नवंबर 27, 2006

डॉ० कुअँर बेचैन said...

Kusum ji bahut bahut dhnayvad.
Kunwar

दिसंबर 27, 2006

subhash Bhadauria said...

आदरणीय कुँअरजी सादर चरण स्पर्श
आपको आपके घर 1982 में मिला था याद आया.
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही हैं आप ने कथ्य की नवीनता तो है ही शिल्प की कसौटी पर भी खरी है.
आपकी ग़ज़ल बहरे रमल मुसम्मनमखबूनमहजूफमें है-
निम्न ग़ालिब की मशहूर ग़ज़ल इसी बहर में है-
इश्क पर जोर नहीं है ये वो आतिश गालिब,
जो लगाये न लगे और बुझाये न बने.
वज़्न इस प्रकार है-
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन.
2122 1122 1122 22
आप ग़ज़ल के खलीफा हैं सब जानते हैं. मैं तो आप को अपना इस तरह सलाम पेश कर अपनी याद दिलाना चाहता हूँ.मेरा याहू पर ब्लॉग है.subhash_bhadauriasb@yahoo.com
पता है.
आपका स्नेहाकांक्षी
डॉ.सुभाष भदौरिया अहमदाबाद.

Anonymous said...

janaab kunwar sahab
adaab
aap ke blog padhne ka awsar mila
ees ghazal ne kafi mutasir kiya ees liye mubarik baad dene se na reh saka khoob surat ghazal likhne per dil ki gehraiyoN se mubarik baad qabool kijiye
guldehelve
karachi
pakistan

Unknown said...

सारी दुनिया में लुटाता ही रहा प्यार अपना
कौन है, सुनते हैं, बेचैन 'कुँअर' है कोई

वाह डॉ. साब! मजा आ गया। अच्छी रचना पर टिप्पणी करना मजबूर कर देता है वरना हम आपकी रचना के तारीफ के काबिल नहीं।