Sunday, July 15, 2007

मध्मवर्गीय पत्नी से

हमारे मध्यमवर्गीय परिवारों में एक शब्द बड़ा ही महत्वपूर्ण होता है और वह है 'कल' सारे काम उसके कल पर ही टाले जाते हैं बच्चों की फीस जमा करनी है तो यही कहा जायेगा 'कल चली जायेगी' आटा पिसाकर लाना है तो कहा जायेगा 'कल जरूर पिस जायेगा' इस प्रकार मध्यमवर्गीय परिवारों में इस 'कल' शब्द का बहुत महत्व है मध्यमवर्गीय व्यक्ति चाहे घर में कुछ भी न हो मगर घर से बाहर बड़ा टिप टॉप होकर निकलना चाहता है इस गीत का पहला पद इसी बात पर आधारित है। दूसरी बात मध्यमवर्गीय व्यक्ति की ज़िंदगी में ये है कि वह घर से पूरी तरह जुड़ा रहकर भी घर में नहीं रह पाता क्योंकि उसे घर की जिम्मेदारियों के लिये घर से बाहर रहना पड़ता है कमायेगा नहीं तो खिलायेगा क्या? वो घर से बाहर रहकर ही घर बना सकता है उसकी इसी विडम्बना पर ये गीत आधारित है-






कल समय की व्यस्तताओं से निकालूँगा समय कुछ

फिर भरुँगा खुद तुम्हारी माँग में सिन्दूर

मुझको माफ़ करना

आज तो इस वक्त काफी देर ऑफिस को हुई है
हाँ जरा सुनना वो मेरी पेंट है न
वो फटी है जो अकेले पाँयचों पर
तुम जरा उसमें लगाकर चन्द टाँके

शर्ट के टूटे बटन भी टाँक देना
इस तरह से, जो नई हर कोई आँके
कल थमे वातावरण से, मैं निकालूँगा प्रलय कुछ
ले चलूँगा फिर तुम्हें इस भीड़ से भी दूर
मुझको माफ करना
आज तो इस वक्त काफी देर, ग्यारह पर सुई है
क्या कहा, है आज पप्पू का जन्मदिन
तुम सुनो, ये बात पप्पू से न कहना
और दिन भर तुम उसी के पास रहना
यदि करे तुमको परेशां, मारना मत
और हाँ, तुम भी कहीं मन हारना मत
कल पराजय के जलधि से, मैं निकालूँगा विजय कुछ
फिर मनायेंगे जन्मदिन की खुशी भरपूर
मुझको माफ करना
आज तो ये जेब भी मेरी फटेपन ने छुई है

डॉ० कुअँर बेचैन

4 comments:

Anonymous said...

priy bhawnaji
namaskar
kunwar sahab ki kavitayein padhkar bahut khushi hoti
hai maine unki kavitayein abhivyakti me padhi thi fir
unki kavitayein e kavita me padhi. mai to unki bhakt
hun. mujhe ve bahut achhe lagte hain. ye kavita bhi
kitni achhi hai? badhai
kusum

नवंबर 21, 2006

Dr.Bhawna Kunwar said...

bahut bahut shukriya kusum ji srahana ke liye aapka message kunwar ji ko bhej diya gaya tha.unhone javab men aapka shukriya ada kiya ha jo aapko unki rachnayen pasnd aati han. vastav men ye bahut acha geet ha.

Bhawna

नवंबर 21, 2006

अनूप शुक्ल said...

बहुत खूब!

Unknown said...

वाह साब! मध्यमवर्गीय परिवार की निबौली जैसी सचाई भी शहद में डुबोकर खिला दी है आपने। मजा आ गया।