Tuesday, January 22, 2008

पिन बहुत सारे

जिंदगी का अर्थ

मरना हो गया है

और जीने के लिये हैं

दिन बहुत सारे ।


इस

समय की मेज़ पर

रक्खी हुई

जिंदगी है 'पिन-कुशन' जैसी

दोस्ती का अर्थ

चुभना हो गया है

और चुभने के लिए हैं

पिन बहुत सारे।


निम्न-मध्यमवर्ग के

परिवार की

अल्पमासिक आय-सी

है जिंदगी

वेतनों का अर्थ

चुकना हो गया है

और चुकने के लिए हैं

ऋण बहुत सारे।


डॉ० कुँअर बेचैन

6 comments:

Anonymous said...

पढने के बाद कमेन्ट करने की हालत में ही नही रहते. बहुत बहुत बहुत खूब

VIMAL VERMA said...

वाह इतनी बड़ी बात और इतने से में कह दिया क्या बात है,अच्छी कविता के लिये शुक्रिया

Shiv said...

बहुत बढ़िया सर. धन्यवाद इतनी बढ़िया कविता देने के लिए.

पारुल "पुखराज" said...

कुँवर जी,बहुत आभार

mamta said...

कम मे ज्यादा !

अविनाश वाचस्पति said...

आसमान बहुत बडा है
और सितारे बहुत सारे
गिन न पाउं जबकि
हैं दिन बहुत सारे