काट तन मोटी व्यवस्था का
जो धकेले जा रही है
देश का पइया !
चल ततइया !
छोड़ मीठा गुड़
तू वहाँ तक उड़
है जहाँ पर क़ैद पेटों में रुपइया !
चल ततइया !!
चल बढ़ा सेना
थाम तुरही, छोड़कर मीठा पपइया !!
चल ततइया !!
काव्य जगत की जानी-मानी हस्ती डॉ० कुँअर बेचैन जी को आप इस साइट पर पढ और सुन सकते हैं। हाल ही में प्रकाशित 'कोई आवाज देता है' उनके इस प्रसिद्ध गज़ल संग्रह से मैं इस ब्लॉग की शुरूआत कर रही हूँ।.......................................Managed and created by: Dr.Bhawna
Posted by डॉ० कुअँर बेचैन at 1:27 AM 3 comments
Posted by डॉ० कुअँर बेचैन at 12:03 PM 7 comments
Posted by डॉ० कुअँर बेचैन at 11:58 AM 5 comments
हमारे मध्यमवर्गीय परिवारों में एक शब्द बड़ा ही महत्वपूर्ण होता है और वह है 'कल' सारे काम उसके कल पर ही टाले जाते हैं बच्चों की फीस जमा करनी है तो यही कहा जायेगा 'कल चली जायेगी' आटा पिसाकर लाना है तो कहा जायेगा 'कल जरूर पिस जायेगा' इस प्रकार मध्यमवर्गीय परिवारों में इस 'कल' शब्द का बहुत महत्व है मध्यमवर्गीय व्यक्ति चाहे घर में कुछ भी न हो मगर घर से बाहर बड़ा टिप टॉप होकर निकलना चाहता है इस गीत का पहला पद इसी बात पर आधारित है। दूसरी बात मध्यमवर्गीय व्यक्ति की ज़िंदगी में ये है कि वह घर से पूरी तरह जुड़ा रहकर भी घर में नहीं रह पाता क्योंकि उसे घर की जिम्मेदारियों के लिये घर से बाहर रहना पड़ता है कमायेगा नहीं तो खिलायेगा क्या? वो घर से बाहर रहकर ही घर बना सकता है उसकी इसी विडम्बना पर ये गीत आधारित है-
Posted by डॉ० कुअँर बेचैन at 11:49 AM 4 comments
Posted by डॉ० कुअँर बेचैन at 11:45 AM 0 comments
Posted by डॉ० कुअँर बेचैन at 11:39 AM 5 comments
Posted by डॉ० कुअँर बेचैन at 11:31 AM 0 comments
Posted by डॉ० कुअँर बेचैन at 11:24 AM 4 comments
Posted by डॉ० कुअँर बेचैन at 11:09 AM 8 comments