बंद होंठों में छुपा लो
ये हँसी के फूल
वर्ना रो पड़ोगे।
हैं हवा के पास
अनगिन आरियाँ
कटखने तूफान की
तैयारियाँ
कर न देना आँधियों को
रोकने की भूल
वर्ना रो पड़ोगे।
हर नदी पर
अब प्रलय के खेल हैं
हर लहर के ढंग भी
बेमेल हैं
फेंक मत देना नदी पर
निज व्यथा की धूल
वर्ना रो पड़ोगे।
बंद होंठों में छुपा लो
ये हँसी के फूल
वर्ना रो पड़ोगे।
Kunwar
13 comments:
Bahut Sundar, Sashakt Panktiyaan.
wah wah
बंद होंठों में छुपा लो
ये हँसी के फूल
वर्ना रो पड़ोगे...
बहुत सुंदर पंक्तिया.. जिस तरह आम आमी आशंकाओं के साए में जी रहा है आज और खुश होने के अवसर कम हैं... और लोग खुश होने भी नहीं देना चाहते... कुवर साहेब की कविता बहुत ही समसामयिक बन गयी है . साथ ही.. नए तरह का प्रयोग भी है कविता में... 'हवाओं के पास आरियाँ' ... शायद यह बात पहली बार कही जा रही है..
आज के हालात पर बहुत ही पैना वार्……………सम सामयिक रचना दिल को छूती है और सोचने को मजबूर करती है।
क्या ही सुंदर अभिव्यक्ति!!!
हर नदी पर
अब प्रलय के खेल हैं
हर लहर के ढंग भी
बेमेल हैं
फेंक मत देना नदी पर
निज व्यथा की धूल
वर्ना रो पड़ोगे।
सर , आपकी दी हुई शिक्षा से कुछ लिख तो लेता हूँ पर आपके रचे पर टिप्पणी कर पाने की औकात अब भी नहीं है. श्रद्धावनत --- रजनीकान्त.
bahot achchi hai.
bahut hi pyari panktiyaan...
laajawaab....
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
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dr.sahab ki kavitaon ka koi jabab nahin main unke saath manch par kavita padh chuka hon aur shrota bhi hon
Bahut hi badiya kavita.........
ye kavita bahut hi sunder hai.
wah. bahot achchi.
बंद होंठों में छुपा लो
ये हँसी के फूल
वर्ना रो पड़ोगे।
bahut hi behatreen prastuti.
poonam
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